मुझे नंगी देखकर चाचा का जानवर जग गया
महेश एक समझदार और सुलझे हुए इंसान हैं मेरी जब से महेश से शादी हुई है तब से मैं और महेश एक दूसरे का बहुत ध्यान रखते हैं। शादी के एक वर्ष बाद ही हमारे घर में नन्हे बालक का जन्म हुआ हम लोगोंने उसका नाम शुभम रखा लेकिन अब शुभम बड़ा हो चुका है और शुभम कक्षा 9 में जा चुका है।
हमारी शादी को देखते ही देखते पता नहीं इतने वर्ष कब बीत गए कुछ मालूम ही नहीं चला लेकिन अब भी महेश का प्यार मेरे लिए वैसा ही है जैसा कि पहले था। महेश हमेशा ही कहते की मैं तुमसे जीवन भर ऐसा ही प्यार करता रहूंगा मुझे महेश का साथ पाकर बहुत अच्छा लगा और उन्होंने आज तक मुझे कभी किसी चीज के लिए डाटा नहीं है उनकी सब लोग बड़ी तारीफ किया करते है। एक दिन मैं सुबह नाश्ता बना रही थी तभी दरवाजे की डोर बेल बजी है और मेरी सासू मां आवाज लगाते हुए मुझे कहने लगी लतिका बेटा देखना दरवाजे पर कौन है। मैंने भी गैस की आंच को धीमा किया और दरवाजे की तरफ बढ़ी जैसे ही मैंने दरवाजा खोला तो सामने चाचा जी खड़े थे मैंने चाचा जी का आशीर्वाद लिया वह कहने लगे क्या भाभी घर पर हैं।
मैंने उन्हें कहा हां चाचा जी सासू मां तो घर पर ही हैं वह अंदर आ गए मैंने उन्हें बैठक में बैठने के लिए कहा। मेरी सासू मां मुझे आवाज लगाते हुए कहने लगी लतिका बेटा कौन है मैंने उन्हें कहा चाचा जी आए हैं वह कहने लगे क्या महेश आए हुए हैं। मैंने उन्हें कहा हां माजी महेश चाचा आए हुए हैं माजी कमरे से बाहर आए और मैं रसोई में जाकर चाय बनाने लगी साथ साथ मैं नाश्ता भी बना रही थी। मैंने सोचा कि महेश चाचा के लिए भी नाश्ता बना देती हूं मैं अपने काम में व्यस्त थी तभी पीछे से शुभम आया और वह कहने लगा मां क्या बना रही हो। मैंने उसे कहा बस तुम लोगों के लिए नाश्ता ही बना रही हूं और महेश चाचा भी आए हैं तो उनके लिए भी अब नाश्ता बना रही हूं शुभम कहने लगा ठीक है मां आप नाश्ता बना लीजिए।
शुभम को भूख लगी थी इसलिए मैंने जल्दी से नाश्ता बना लिया था मैं जब बैठक में गई तो महेश चाचा और माजी हंस रहे थे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कि अभी कुछ देर पहले ही महेश चाचा ने माजी को चुटकुले सुनाए होंगे। मैंने महेश चाचा को चाय दी और माजी को भी चाय दी तो माजी कहने लगी लतिका बेटा अभी रहने दो मेरा अभी मन नहीं हो रहा है। वह दोनों आपस में बात कर रहे थे मैं दोबारा से रसोई में गई और अब मैं नाश्ता बना चुकी थी मैंने माजी से कहा आइए सब लोग नाश्ता कर लेते हैं। मैंने शुभम को भी आवाज लगाते हुए कहा शुभम तुम भी नाश्ता कर लो शुभम भी आ गया मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे शुभम महेश चाचा की बातों से बचने की कोशिश कर रहा है वह सिर्फ अपने नाश्ते की तरफ ध्यान दिए हुए था और अपने नाश्ते को पूरा करते ही वह अपने रूम में चला गया।
मुझे उसका यह व्यवहार बिल्कुल अच्छा नहीं लगा लेकिन मैं उससे कुछ कह भी तो नहीं सकती थी अब वह भी बड़ा होने लगा था इसलिए मैंने उसे कुछ नहीं कहा। मैंने अब बर्तन समेट लिए थे और मैं बर्तन धोने लगी बर्तन धोकर जब मैं बाहर आई तो महेश चाचा और माजी आपस में बात कर रहे थे मैं भी उनके साथ बैठ गई। माजी कहने लगी लतिका तुमने सारा काम निपटा लिया है मैंने उन्हें जवाब देते हुए कहा हां माजी मैंने सारा काम निपटा लिया है वह मुझे कहने लगी चलो तुम भी हमारे साथ ही बैठ जाओ। हम लोग भी आपस में बातें ही कर रहे हैं वैसे भी तुम अब क्या करोगी मैंने मां जी से कहा मैं अभी शुभम को देख कर आती हूं। मैं शुभम के पास चली गई जब मैं शुभम के पास गई तो वह अपनी पढ़ाई कर रहा था मैंने शुभम से कहा अच्छा तो बेटा तुम पढ़ाई कर रहे हो वह कहने लगा मां मैं पढ़ाई कर रहा हूं।
मैंने उसे कहा चलो ठीक है तुम पढ़ाई कर लो और फिर मैं वहां से वापस लौट आई। महेश चाचा गांव की कुछ बातें कर रहे थे वह सासू मां से कह रहे थे कि भाभी जी अब गांव में पहले जैसा माहौल नहीं रहा और ना ही वह प्यार प्रेम लोगों के बीच में है। महेश चाचा गांव की हर एक खबर सासु मां को दे रहे थे महेश चाचा के आने का एक फायदा तो हुआ मां जी भी अब महेश चाचा के साथ बैठ कर बात कर रही थी नहीं तो वह अपने कमरे में ही बैठी रहती और वह ज्यादा किसी से बात नहीं करती। जैसे ही महेश आए तो उन्होंने महेश चाचा को देखते ही कहा अरे चाचा जी आप कब आए तो महेश चाचा कहने लगे मुझे आए हुए तो काफी समय हो गया है लेकिन तुम तो काफी देर से ऑफिस से लौट रहे हो।
महेश कहने लगे हां चाचा जी आज कल ऑफिस में कुछ ज्यादा काम है इसलिए ऑफिस में ही रहना पड़ता है। चाचा जी ने भी महेश से कुछ बातें कि तब तक महेश कहने लगे कि मैं अभी फ्रेश होकर आता हूं मैंने भी महेश से कहा कि आप चाय तो लेंगे ना वह कहने लगे हां मेरे लिए तुम चाय बना देना। मैं भी रसोई में चाय बनाने के लिए चली गई मैं चाय बना कर महेश चाचा के साथ बैठी हुई थी वह लोग आपस में बात कर रहे थे। महेश चाचा महेश से कह रहे थे कि बेटा तुम तो गांव ही नहीं आते हो महेश कहने लगे चाचा जी आपको तो मालूम ही है कि मेरे पास तो बिल्कुल भी समय नहीं हो पाता। वह दोनों आपस में बात कर ही रहे थे कि मैंने महेश चाचा और महेश को चाय दी।
महेश चाचा महेश से कहने लगे बेटा तुम्हारी तरक्की से मुझे बहुत खुशी हुई यदि तुम भी गांव में रहते तो शायद इतनी तरक्की नहीं कर पाते लेकिन तुमने एक अच्छा फैसला किया जो तुम गाँव से बड़े शहर में आ गए और तुम्हारी कामयाबी से मैं बहुत खुश हूं। महेश चाचा का पूरा परिवार अभी गांव में खेती करता है लेकिन वह बीच-बीच में हम लोगों से मिलने के लिए आ जाया करते हैं उनका प्रेम हमारे लिए बहुत है और वह जब भी आते हैं तो 8 10 दिन तो रुकते ही हैं। जब चाचा पुरानी बातें करते तो वह काफी भावुक हो जाते और महेश के सामने भी उन्होंने कुछ पुरानी यादें ताजा कर दी जिससे कि महेश भी भावुक हो गए थे। महेश बहुत ही बिजी रहते हैं इसलिए उनके पास समय कम होता है।
चाचा जी घर पर ही रुकने वाले थे तो महेश ने कह दिया था चाचा जी का अच्छे से ध्यान रखना। मैंने महेश से कहा मै महेश चाचा का अच्छे से ध्यान रखूंगी। हर रोज की तरह में नाश्ता बनाकर और साफ-सफाई कर के करीब 10:30 बजे अपने काम से फ्री हुई थी तो मैंने सोचा मैं नहा लेती हू क्योंकि बदन से पसीने के बदबू भी आ रही थी और गर्मी भी काफी हो गई थी। मैंने सोचा मैं नहा लेते हूं मैं बाथरूम में चली गई मैंने अपने बदन से सारे कपड़े उतार दिए लेकिन मैं तौलिया बेडरूम में लाना भूल गई थी। मैंने सोचा ऐसे ही चली जाती हूं जैसे ही मैंने दरवाजा खोला और बाहर आई तो मैंने देखा महेश चाचा बैठे हुए थे। उन्होंने जैसे ही मुझे देखा तो वह मुझे घूरने लगे और मैं किसी पुतले की तरह एक जगह खड़ी हो गई मैं अपने बदन को ढकने की कोशिश करने लगी लेकिन महेश चाचा के अंदर का जानवर जाग चुका था। उनकी आग को बुझाने के लिए मुझे कुछ करना था।
महेश चाचा ने मुझे बिस्तर पर लेटा दिया और जिस प्रकार से उन्होंने मेरे होठों पर किस किया तो मुझे भी बड़ा मजा आने लगा। वह तो मेरे होठों को चुम रहे थे जैसे ना जाने कितने बरसों से भूखे बैठे हो। जब उन्होंने मेरे स्तनों को अपने मुंह में लेकर चूसना शुरू किया तो मुझे मज़ा आने लगा। जैसे ही मैंने उन्हे कहा कि आप अपने लंड को बाहर निकाल लो तो उन्होंने अपने मोटे से लंड को निकाल लिया।
मैंने उसे अपने मुंह के अंदर समा लिया था मैंने उनके लंड को बड़े ही अच्छे से अपने लंड के अंदर बाहर किया तो उन्हें भी मजा आने लगा। काफी देर तक मैं उनके लंड को अपने मुंह में लेकर सकिंग करती रही परंतु जैसे ही उन्होंने मेरी चूत का रसपान करना शुरू किया तो मेरे अंदर से आग बाहर की तरफ से निकलने लगी थी। मैं भी अब ज्यादा देर तक रह ना सकी मैंने भी महेश चाचा को कहा आप अपने मोटे लंड को मेरी चूत के अंदर घुसा दो। उन्होंने मेरी चूत पर अपने मोटे लंड को लगा लिया और जैसे ही उन्होंने अंदर की तरफ धक्का दिया तो उनका मोटा लंड मेरी चूत के अंदर प्रवेश हो गया।
जिस प्रकार से उनका लंड मेरी चूत के अंदर बाहर हो रहा था उस से मैं बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी और मुझे बड़ा आनंद आ रहा था। मेरी चूत अंदर से छिल चुकी थी उन्होने दोनों पैरों को अपने कंधों पर रखा और बहुत ही तेजी से धक्के देने लगे लेकिन जब उन्होंने अपने लंड को बाहर निकालते हुए एक ही झटके मैं मेरी कोमल और मुलायम गांड के अंदर अपने मोटे लंड को प्रवेश करवा दिया तो मैं चिल्ला उठी। उनका लंड मेरी गांड के अंदर बाहर हो रहा मुझे बड़ा दर्द हो रहा था लेकिन वह तो मुझे धक्के मारने पर लगे हुए थे। उन्होंने मेरी गांड के मजा लेने मे मजा आता। जब मैंने उन्हें कहा कि आप अपने वीर्य को गिरा दीजिए तो उन्होंने अपने वीर्य को मेरी गांड के अंदर गिरा दिया। महेश चाचा की इच्छा तो पूरी हो चुकी थी लेकिन मैं उनसे नजरे ना मिला सकी।