Tution Me Student Se Chudai Ki Kahani
मैं एक टीचर थी पर थी तो एक अकेली औरत ही न.. मेरा भी मन होता था चुदने का और दिन भर उन नए नए जवान लौंडो को देखके चूत भी बेचैन रहती थी। एक दिन मैंने फैसला किया। एक कामुक tuition sex story पेश।
मैं स्कूल में बायलोजी विषय की टीचर थी। 12वीं क्लास को पढ़ाती थी मेरी क्लास में लड़के और लड़कियां दोनों ही पढ़ते थे। स्कूल में साड़ी पहनना जरूरी था। मैं दूसरी टीचर्स की तरह खूब मेक-अप करती और खूबसूरत साडियां पहनकर स्कूल आती थी, जैसे कोई स्पर्धा चल रही हो।
क्लास में मुझे तन्मय बहुत ही अच्छा लगता था। वो 18 साल का एक सुंदर लड़का था, लंबा भी था, और हमेशा मुझे देखकर मुश्कुराता था, बल्कि खुश होता था। उसकी मतलबी मुश्कुराहट मुझे बैचैन कर देती थी। मुझे भी कभी-कभी लगता था कि तन्मय मुझे अपनी बाँहों लेकर चूम ले।
तन्मय ही आज की कहानी का नायक है।
हमेशा की तरह आज भी क्लास में मैं पढ़ा रही थी। मैंने स्टूडेंट्स को एक सवाल का उत्तर लिखने को दिया। सवाल सरल था। सभी लिखने लगे, पर तन्मय मुझे बार-बार देख रहा था। उसे देखकर आज मेरा मन भी मचल गया। मैं भी मुश्कुरा कर उसे निहारने लगी। वो मुझे लगातार देखता ही जा रहा था, कभी-कभी उसकी नजरें झुक भी जाती थी। मुझे लगा कि कुछ करना चाहिए। मैं घूमते हुए उसके पास गयी और उसके कंधे पर हाथ रखकर बोली- “तन्मय कुछ मुश्किल है क्या?” और मैंने उसका कन्धा दबा दिया।
तन्मय- “न… नहीं मैम…”
मैं उससे सट गई। उसके कंधे का स्पर्श मेरी जाँघों में हुआ तो मैं सिहर उठी। क्लास के बाद मैंने पेपर ले लिए। छुट्टी के समय मैंने तन्मय को बुलाया और कहा- “मैंने तुम्हारा पेपर चेक कर लिया है। तन्मय, तुम बायोलोजी में कमजोर हो। तुम्हें मदद की जरूरत हो तो घर पर आकर मुझसे पूछ सकते हो…”
तन्मय- “जी मैम… मुझे जरूरत तो है, पर आपका घर का पता नहीं मालूम है…”
मैं- “अगर तुम्हें आना हो तो 4:00 बजे शाम को आ जाना, मेरा पता ये है…” मैंने अपने घर का पता एक कागज़ पर लिखकर देते हुए कहा।
तन्मय- “जी थैंक्स…” तन्मय के शरीर से एक तरह की खुशबू आ रही थी, जिसे मैं महसूस कर रही थी।
मैं- “तन्मय तुम कहाँ रहते हो?”
उसने अपने घर का पता बताया। वो मेरे घर से काफी दूर था। शाम को वो 4:00 बजे से पहले ही आ गया। मैं उस समय लम्बी स्कर्ट और ढीले ढाले टाप में थी। मेरे बड़े और भारी स्तन उसमें से बाहर निकले पड़ रहे थे। तब मैं सोफे पर बैठी चाय पी रही थी।
मैंने उसे भी चाय पिलाई। फिर मैंने पूछा- “किताब लाये हो?”
उसने किताब खोली। मैं उसे पढ़ाने लगी। मैं सेंटर टेबल पर इस तरह झुकी थी कि वो मेरी चूचियां अच्छी तरह देख सके। ऐसा ही हुआ और उसकी नजरें मेरी बूब्स पर गड़ गयीं। मैंने काफी देर तक उसे अपनी चूचियां देखने दी। मुझे अब विश्वास हो गया कि वो गरम हो चुका है। मैंने तुंरत ही गरम-गरम लोहे पर चोट की- “तन्मय… क्या देख रहे हो?”
वो बुरी तरह से झेंप गया। पर सँभलते हुए बोला- “नहीं, कुछ नहीं मैम…”
मैंने देखा तो उसका लण्ड खड़ा हो गया था। मैंने कहा- “मुझे पता है तुम कहां झांक रहे हो। तुम अपने घर में भी यही सब करते हो? अपनी माँ बहन को भी ऐसे ही देखते हो क्या? तुम्हें शर्म नहीं आती…”
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वो घबरा गया- “मैम वोऽऽ… वोऽऽ… आई एम सारी…”
मैं- “सारी क्यों? तुम्हें जो दिखा, तुमने देखा। तुमने मेरा स्तन देखे, पर मेरा टाप तो उतारकर नहीं देखे, हाथ नहीं लगाया फिर सारी किस बात की? मिठाई खुली पड़ी हो तो मक्खी तो आएगी ना। पर हाँ… सुनो किसी को कहना मत…”
तन्मय- “नऽऽ… नहीं मैम, नहीं कहूँगा…”
मैं- “अच्छा बताओ तुम्हारी बहन है?”
तन्मय- “हाँ मैम… है, एक बड़ी बहन है…”
मैं- तुम उसे भी ऐसे ही देखते हो। उसकी चूचियां भी ऐसी हैं, मेरे जैसी?”
तन्मय- “नहीं मैम… वोऽऽ उसकी तो आप आपसे छोटी हैं…” तन्मय शर्माते हुए बोला।
मैं- “तुम्हें कैसे पता, बोलो?”
तन्मय- “जी… मैंने छुप के देखी थी, जब वो नहा रही थी…” वो शर्माता भी जा रहा था और मैंने देखा कि उसका मुँह लाल हो रहा था। मैं समझ गयी कि वो उत्तेजित होता जा रहा है। मैंने धीरे से उसकी जांघ पर हाथ रखा तो वो सिहर गया। पर वो कुछ बोला नहीं। मैं अब उसकी जांघ सहलाने लगी। मेरे अन्दर उत्तेजना अंगड़ाई लेने लगी। मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने धीरे से उसके लण्ड पर हाथ रख दिया।
वो मेरा हाथ हटाने लगा- “मैम ना करो ऐसे, गुदगुदी होती है…”
मैं- “अच्छा, कैसा लगता है?” मैंने अब उंगलियों से उसके लण्ड को ऊपर से पकड़कर दबाया।
तन्मय- “मैम आह्ह… अह्ह… नहीं… मैम छोड़ो ना…”
मैं- “पहले बताओ कैसा लग रहा है?”
तन्मय- “मैम… मीठी-मीठी सी गुदगुदी हो रही है…” और वो शर्मा गया। उसने मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया पर मेरा हाथ नहीं हटाया, बल्कि सोफे पर आगे सरक कर अपने लण्ड को और ऊपर उभार लिया।
मैं खुश हो गई। चलो अब रास्ता साफ है। मैंने जल्दी से उसकी पैन्ट की ज़िप खोली और उसका लण्ड बाहर खींच लिया। उसने अपनी आंखें बन्द कर ली। मैं लण्ड को प्यार से आहिस्ता-आहिस्ता सहालाने, मसलने लगी। तन्मय सीत्कारने लगा। उसने धीरे से अपनी आंखें खोलकर मुझे देखा। मैंने प्यार से उसके होठों को चूम लिया। अब उसके सब्र का बांध भी टूट गया। उसने मेरी चूचियां पकड़ ली और बुरी तरह भींच लीं और वो मेरे टाप के ऊपर से ही मेरे चूचुक खींचने लगा। तन्मय मेरे साथ निर्दयता से पेश आ रहा था।
मैं कराहने लगी- “तन्मय… धीरे-धीरे तन्मय…” मैंने उसका हाथ पकड़कर हटाना चाहा मगर उसने मुझे छोड़ा नहीं। उसका लण्ड फूलकर फटने को हो रहा था। मैंने लण्ड के सुपाड़े की चमड़ी ऊपर खींच दी और झुक कर लण्ड को अपने मुँह में ले लिया। तन्मय अपने चूतड़ उछाल-उछालकर मेरे मुँह को चोदने लगा। उसका लण्ड बढ़ता ही जा रहा था। मेरी उससे चुदने की इच्छा भी बढ़ती जा रही थी।
मैं सोफे से उठी और तन्मय को लेकर बिस्तर पर आ गई। जैसे ही मैंने अपना टाप उतारने के लिए अपने हाथ ऊपर किए, तन्मय ने मेरी स्कर्ट नीचे सरका दी। ब्रा और पैन्टी तो मैंने पहले से ही नहीं पहनी थी। अब मैं अपने जन्म-रूप में थी और चुदने को बिल्कुल तैयार थी। मेरी चूत गीली हो चुकी थी।
मैंने तन्मय से भी कपड़े उतारने को कहा। वो तो इसके लिए पहले से ही आतुर था, उसने फटाफट अपने सारे कपड़े उतार दिए और मादरजात नंगा हो गया।
मैंने उससे प्यार से पूछा- “तन्मय… मुझे चोदोगे?”
तन्मय- “हां मैम… लेट जाओ जल्दी से…”
अब मैंने उसे तड़पाने की सोची और कहा- “अगर मुझे चोदना है तो पहले मेरी गाण्ड चाटो…” और मैंने अपनी दोनों टांगें ऊपर उठाकर अपने चूतड़ों को ऊपर उठा लिया। इससे मेरी गाण्ड का छेद उभरकर दिखने लगा। मैंने उसे अपनी गाण्ड की तरफ इशारा करके कहा- “चाटो… अपनी जीभ मेरी गाण्ड के छेद में घुसाओ…”
पर वो अपनी जगह से हिला नहीं और झिझकते हुए बोला- “नहीं मैम… मैं ये काम नहीं कर सकता, गंदा लगता है…”
मैं- “अरे चाटो ना, बहुत मज़ा आएगा मुझे…”
पर तन्मय नहीं माना।
मैंने कहा- “ठीक है पर चूत तो चूसो, देखो कितनी पनीली हो रही है…”
तन्मय- “नहीं मैम, मैं तो बस अपना लण्ड चूत में घुसाना चाहता हूं…”
मुझे गुस्सा आने लगा। लेकिन अपने गुस्से को काबू में करके मैंने उससे कहा- “साले पहले कोई चूत देखी भी है या नहीं? बस चूत में घुसाने की जिद लगा रखी है…” मैंने भी सोच लिया कि जब तक अपनी गाण्ड और चूत तन्मय से चटवा नहीं लूंगी इसको चूत में नहीं डालने दूंगी।
मैंने कहा- “अच्छा मेरे पास आओ…”
उसने मेरी एक चूची को मुँह में ले लिया और दूसरी को हाथ से मसलने लगा। मैंने उसका लण्ड पकड़ लिया और उँगलियों से उसके लण्ड को मसलने लगी। वो उत्तेजित हो उठा। मैंने खींचकर उसे अपने से चिपका लिया। मुझे पता था कि वो चोदना चाह रहा है। मैं उसके लण्ड की और तेजी से मुठ मारने लगी। वो सिस्कारियां भरता रहा। मुझे लगा कि वो अब जल्दी झड़ जाएगा, और उसी समय उसका वीर्य निकल पड़ा, वो अपनी उत्तेजना सम्भाल नहीं पाया। मुझे भी यही चहिए था। उसका लण्ड सिकुड़ गया और उसका वीर्य मेरे हाथ से टपक रहा था।
वो बोला- “मैम, ये क्या हो गया? अभी तो मैंने अन्दर भी नहीं डाला था…”
मैं- “अन्दर तो मैं तुझे तब तक नहीं डालने दूंगी जब तक तू मेरा कहा नहीं मानता। मेरी गाण्ड और चूत नहीं चूसेगा तो मैं भी चूत में नहीं डलवाऊँगी। ले अब चूस, चाट ले मेरी गाण्ड, इतनी देर में ये भी फिर तैयार हो जाएगा…” मैं उसके निढाल लौड़े को छेड़ते हुए बोली।
तन्मय- “नहीं मैम, बहुत गंदी होती है ये, मुझे घिन आती है…”
मैं- “बहनचोद घिन आती है, गंदी है फिर क्यूं अपना लण्ड हाथ में लेकर इसके पीछे पड़ा है? अच्छा बता अब तक कितनी बार चुदाई की है? किस-किस को चोद चुका है?
तन्मय- “मैम किसी को नहीं। एक बार भी नहीं…”
मैं- “अच्छा बताओ, तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड है?”
तन्मय- “नहीं मैम, गर्लफ्रेंड नहीं, पर जिया मुझे अच्छी लगती है…”
मैं- “अच्छा… और उसे तुम अच्छे लगते हो?”
तन्मय- “हाँ मैम, मुझसे बात भी करती है और मुझे ललचाई नजरों से देखती है…”
मैं- “ठीक है… कल मैं उसको यहाँ बुलाती हूँ। या कल तुम उसे यहाँ ला सकते हो?”
तन्मय- “मैम, ऐसे कैसे मैं ला सकता हूँ उसे? आप ही बुला लो यहाँ…”
मैं- वो चुद जाएगी तुमसे?
तन्मय- “अगर आप हेल्प करोगी तो वो जरूर आ जायेगी और फिर देखेंगे क्या होता है? शायद चुद जाए…”
मैं- “ठीक है, उसे फिर खूब चोदना मेरे सामने…”
तन्मय- “प्रोमिस मैम…”
मैं- “प्रोमिस…”
वो खुश हो गया और किताब उठाकर चला गया।
अगले दिन मैंने जिया को तन्मय के साथ आने को कह दिया। जिया तुंरत तैयार हो गयी। मैं समझ गयी कि आग दोनों ओर लगी है। तन्मय उसे अपनी मोटर साइकिल पर बैठाकर ले आया। तन्मय और जिया को मैंने पास-पास ही सोफे पर बैठाया। मैं चाय बनाकर ले आयी। मैंने देखा कि वो दोनों एक दूसरे की टांगों को स्पर्श करते हुए बैठे बात कर रहे थे।
मैं मुश्कुरा उठी।- “जिया… तन्मय तुम्हारी बहुत तारीफ कर रहा था…”
तन्मय ने तुंरत ही कहा- “मैम… मैं अभी आया…” वो उठकर बाहर चला गया।
जिया ने कहा- “मैम… मुझे क्यों बुलाया है?”
मैं- “तुम्हें तन्मय अच्छा लगता है?”
जिया- “वो मेरे से कुछ बात ही नहीं करता है ज्यादा…”
मैं- “तुम उसे पसंद करती हो?”
वो शर्मा गयी- “मैम वो मुझे अच्छा लगता है…”
वो भी तुम्हें चाहता है, उसी के कहने पर तुम्हें मैंने यहाँ बुलाया है, पर वो झिझकता है अपने प्यार का इजहार करने में। देखो अब भी उठकर दूसरे कमरे में चला गया, शर्माकर।
जिया- “मैंने तो उसे कई बार संकेत दिए पर वो समझ ना सका…”
मैं- “ऐसी बात नहीं कि वो तुम्हारे इरादों से बेखबर है, वो डरता है और शर्माता भी है, वो तो कल मुझसे पढ़ने आया तो मैंने बातों-बातों में ऐसे ही पूछ लिया उससे कि कोई गर्लफ्रेंड है या नहीं? तो बहुत बार पूछने पर बताया कि तुम उसे अच्छी लगती हो तो मैंने उससे प्रोमिस किया कि मैं तुम दोनों की दोस्ती करा दूंगी…”
फिर मैंने कहा- “तो सुनो जिया, तुम्हें मैं एक मौका देती हूँ। वो मेरे बेडरूम में है जाकर उसे जो कहना है कह दो ना…”
जिया- “मैम… शर्म आयेगी मुझे भी। वो लड़का होकर भी नहीं कह सकता फिर मैं तो लड़की हूँ…”
मैं- “अच्छा… तो मैं तुम्हारा काम बनती हूँ… पर इसका टैक्स देना पड़ेगा…”
जिया- “मैम बस एक बार हमारी दोस्ती करवा दो… फिर…”
मैं- “ओके… फिर क्या करोगी बता दो?” मैंने उसे रहस्यमई निगाहों से देखा।
जिया- “मैम वो… कुछ खास नहीं बस… कुछ नहीं मैम…”
मैं- “कुछ तो… अगर वो तुम्हें किस करे तो, तो करने दोगी?”
जिया- “मैम… आप भी बस…”
मैं- “बताओ ना?”
जिया- “हाँ…”
मैं- और?
जिया- और क्या?
मैं- “हाँ… हाँ बोलो और भी कुछ…”
जिया- “मैम… आपको भी मज़ा आ रहा है यह सब पूछकर?”
मैं- “हाँ… बहुत मजा है इस सब में… अच्छा बताओ अगर तन्मय तुम्हारे चूचियां पकड़ ले तो?”
जिया- “मैम बस करो… आप तो बेशर्म होती जा रही हो…”
मैं- “क्यूँ… इसमें ऐसी क्या बात है? क्या तुम्हारा मन नहीं करता कि कोई तुम्हें किस करे? तुम्हारे शरीर को मसल दे? इस उमर में यह सब करने की इच्छा होती है, मुझे तो बहुत होती है, तुम्हें भी जरूर होती होगी, है ना…”
जिया- “हाँ मैम, पर डर लगता है किसी को पता चल गया तो?”
मैं- “यहाँ हमारे सिवा और कौन है? बस सारी बात हम तीनों के बीच ही रहेंगी…”
जिया- “मैम कुछ होगा तो नहीं? मुझे डर लग रहा है और अब तो इच्छा भी बहुत जाग उठी है…”
मैं- “डरो मत… अन्दर बेडरूम में जाओ और कह दो तन्मय से दिल कि बात। वो भी बेचैन है…”
जिया- “नहीं मैम, आप उसे यहीं बुला लो, यहाँ आपके सामने ही, बल्कि आप ही कह दो सारी बात…”
मैं- “चलो यह काम अगर मैं करुँगी तो बाकी काम भी मैं ही कर लूंगी उसके साथ…”
जिया- “मैम…”
मैं- “अच्छा बुलाती हूँ…” यह कहकर मैंने तन्मय को आवाज लगाकर बुलाया।
तन्मय अपनी किताबें लेकर अन्दर आ गया। वो मुझसे कुछ पूछने लगा किताब में से।
मैंने उससे कहा- “ज्यादा नाटक मत करो और काम कि बात पर आओ। जिया तुमसे कुछ कहना चाहती है…